ये दिल्ली है
दिल्ली-दुखिया क्या-क्या
सहती है !
हर टोपी, कुर्ता, झंडा
इसको
फुसलाता है
जो भी आता
घाव नया -
देकर ही जाता है
मगर नहीं ये
कभी किसी से
कुछ भी कहती है।
नजरों पर दिल्ली
रहती है
दिल्ली पर नजरें
दिल्ली को दिल में
रखती हैं
दिल्ली की खबरें
कुर्सी के सपनों में
केवल
दिल्ली रहती है।
नित्य सुबह से शाम
बैठ सत्ता के
कोठे पर
पल-पल रहती दिल्ली
खुद ही
बिकने को तत्पर
रोज सँवरती
बाहर से
भीतर से ढहती है।